बहुजन का सर्वनाम

यदि हम बुद्ध के दर्शन को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखते हुए उसमें वर्तमान परिस्थितियों से पैदा होने वाली समस्याओं का हल ढूँढ़ते हैं तो बहुजन की बात और अधिक स्पष्ट होकर सामने आती है। मिसाल के तौर पर बुद्ध ने एक हिंसक आक्रांता अँगुलीमाल को भी दीक्षा दी थी।

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प्रतिध्रुव

अपने समय में ये कहानियाँ विभिन्न अखबारों में छपी थीं और वहीं दब कर रह गई। उनमें 1967 में लिखी एक ऐसी भी कहानी है, जो तब चार लेखकों ने मिलकर लिखीं थीं, जो उस समय की चर्चित पत्रिका ‘कल्पना’ में छपी थी। ‘प्रतिध्रुव’ नाम की इस कहानी को ‘नई धारा’ के पाठकों के लिए पुनः प्रस्तुत कर रहे हैं।

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पुरानी फ्रॉक

जब से मालकिन की बेटी ने उसे पुरानी फ्रॉक दी है, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं उसे याद आई कितना खुश थी उसकी माँ जब मालकिन ने उन्हें पुरानी साड़ी दी थी

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टीसन के बच्चे

ट्रेन के आते दौड़ पड़ते, गिड़गिड़ाते ढोने को सामान, यात्री खुश होते, वर्दीधारी कुली के बदले में बड़े सस्ते में पट जाते बच्चे

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वैसा ही संगीत

पतझर के उदास मौसम में कच्ची राहों पर झुके दरखतों से टूट-टूट कर गिरते सूखे पत्तों की चरचराहट में भी –विलगाव के गहरे विषाद, उदासी, पीड़ा का वैसा ही संगीत जान पड़ता है।

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