उलगुलान की अनुगूंज में शामिल स्वर

निस्संदेह हरेराम त्रिपाठी चेतन सुकवि हैं। उनके पास भाव हैं, विचार हैं, संपदा है, अभिव्यक्ति की कला है। लेकिन इतने भर से कवि की तमाम मुश्किलों पर विराम नहीं लग जाता।

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मैं तेरा शहर छोड़ जाऊँगा

मैंने नहीं देखा कि कैसे थे पिता। माँ ही बताती थी कि मेरे पिता बहुत सुंदर और बहुत मेहनती थी। माँ यह भी बताती थी कि पिता मेहनती तो इतने थे कि सारे-सारे दिन काम करने के बाद रात में भी काम करते थे।

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राष्ट्रीय राजमार्ग

यह अप्रैल 1540 की बात है। हुमायूँ अपनी किस्मत आजमाने और शेरशाह से दोबारा दो-दो हाथ करने कन्नौज के निकट बिलग्राम आ धमका, भारी लाव-लश्कर के साथ। वह गंगा के इस किनारे पर आकर ठहर गया। शेरशाह ने भी गंगा के दूसरे किनारे पर अपना शिविर लगाया और उसकी चारों ओर मिट्टी की दिवारें खड़ी कर दी।

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अरेबियन नाइट्स की कहानियाँ

मेरी नजर एक मोटी सी पुस्तक पर पड़ी जिसका नाम था, ‘अरेबियन नाइट्स’ और अनुवादक का नाम था सर रिचार्ड बर्टन। विषय-सूची में अनेक कहानियों के नाम जाने पहचाने लगे, जैसे, सिंदबाद की यात्राएं, अलादीन और जादुई-चिराग, अलीबाबा और चालीस चोर आदि।

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रोशनी की तलाश करती कविताएँ

कमल कुमार के नए कविता-संग्रह ‘घर और औरत’ की अधिकतर कविताओं में ‘अंधेरा’ या उससे जुड़े बिंब और संदर्भ साभिप्राय हैं। ‘अंधेरा’ अनेक व्यंजनाओं को समेटे हुए हैं और प्रायः सभी का सीधा संबंध नारी मात्र की तकलीफ और यातना से है।

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जब जब देखा लोहा देखा

बाबूजी (स्वर्गीय प्रो. गोपाल राय) के पंचतत्व में विलीन होने के उपरांत उनकी अस्थियाँ बिनते समय एक कठोर तप्त वस्तु के हाथ से स्पर्श होते ही माथा ठनका।

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