नेहपाश

एकांत प्रहर में अकसर मेरे भीतर कला खदबदा तीस्वप्न कुलबुलाते नूतन कल्पनाएँ लेकर किसी श्वेत, मूक कागज़ कोकला रेखाओं से भरना

और जानेनेहपाश

दर्द उधार दो

मुझे थोड़ादर्द उधार दोआँखें जो आज सूख चुकीं उनमें थोड़ी नमी चाहिए आत्मा जो चैन से सो रही उसे तड़प से तृप्त करो मन का सागर शांत पड़ा है

और जानेदर्द उधार दो

लौट आओ

लौट आओ मेरे गुड्डू तुम चले गए कहाँ ! पथरा गई आँखें बाट जोहते-जोहते हुई कौन सी भूल हमसे तुम इस कदर रूठ गए दशरथ के राम भी वनवास गए थे

और जानेलौट आओ