कैकेयी के चरित्र का विकास
विश्वरचयिता की भाँति कवि भी सृष्टि-कर्त्ता है। उसकी सृष्टि सौंदर्य की सृष्टि है। अपनी असाधारण प्रतिमा एवं असाधारण पर्यवेक्षण-शक्ति के द्वारा वह इस विशाल विश्व के अणु-अणु में सौंदर्य के दर्शन करता है।
विश्वरचयिता की भाँति कवि भी सृष्टि-कर्त्ता है। उसकी सृष्टि सौंदर्य की सृष्टि है। अपनी असाधारण प्रतिमा एवं असाधारण पर्यवेक्षण-शक्ति के द्वारा वह इस विशाल विश्व के अणु-अणु में सौंदर्य के दर्शन करता है।
बीत चुके इतने दिन जैसे पर कल की ही बात, नहीं मिटा पाया उस छवि को क्रूर समय का हाथ।
सब कहते हैं–गीत सुनाओ! मन को थोड़ा बहलाओ! यह न पूछता कोई तुमको क्या पीड़ा है बतलाओ?
नीली वर्दी में औरतें कुली का काम कर रही थीं, लोग कायदे से इधर-उधर चल-फिर रहे थे, भीड़ बहुत थी किंतु शोर कम, और दूर, फीके आकाश में तीन-चार चीलें उड़ रही थीं।
भिन्न-भिन्न राष्ट्रों ने अपनी-अपनी संस्कृति के अनुसार प्रेम का प्रकाश करने के लिए भिन्न-भिन्न रीतियाँ निकाल रखी हैं।