राबर्ट बर्न की कविताओं का सार्थक अनुवाद

रॉबर्ट बर्न अन्याय, शोषण और विसंगतियों के विरुद्ध अपनी कविताओं को अभिव्यक्त करते हैं और जब तक ऐसी स्थितियाँ संस्मरण रहेंगी

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क्रांति समय में

क्रांतियाँ निष्फल नहीं होती बलि माँगती हैं खून को पसीना बनाकर आपको बेहतर मनुष्य होने का अहसास करवाती हैंक्रांतियों से कुछ लोग सिखते हैं कुछ डरते हैं कुछ वज्र मूर्ख होते हैं –मरते हैं

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अम्मा

अम्मा जिसके स्वप्न गाँव में बार-बार अँखुआते थे कल शहर हवा के साथ तैरकर आने को थे कितने बेकलउन्हीं स्वप्न-खँडहर पर अम्मा दीपक आज जला आती है।

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ताख पर सिद्धांत

ताख पर सिद्धांत धन की चाह भारी हो गया है आज आँगन भी जुआरीरोज़ ही गँदला रहा है आँख का जल स्वार्थ-ईर्ष्या के हुए ठहराव सेढल रहा जो वक्त उसकी चाल का स्वर

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धरती से अंबर तक

मुर्दा बनकर ज़िंदा तो रह लेते हम ज़िंदा दिखना सबके वश की बात नहीं हूनर, हिम्मत, मेहनत, खून-पसीने की मजदूरी लेते हैं हम, खैरात

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रोज आते रहें, रोज जाते रहें

जब मिलें आमने-सामने मोड़ पर देखकर आप-हम मुस्कुराते रहेंगम बसाए न घर में कभी देर तक गीत हो या ग़ज़ल गुनगुनाते रहेंप्यार की राह में ख़ूब फिसलन लगे

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