एक पुनर्चिंतन : हिंदी साहित्य का आदिकाल

हिंदी साहित्य का भक्ति युग भारतीय साहित्य का श्रेष्ठतम रूप उपलब्ध कराता है। भक्ति प्रधान पौराणिक-आख्यान और अद्वैतवादी चिंताधारा

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कविता रहेगी

उसे क्या पता है कि एक आदमी खत्म हो सकता है जीवन खत्म नहीं हो सकता एक कवि मर सकता है मारा जा सकता है कविता कभी मर नहीं सकती उसका लिखा जाना प्रतिबंधित किया जा सकता है

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कविता

कविता के लिए मैं कहीं नहीं जाता कोई विशेष उपक्रम भी नहीं करता योजना भी नहीं होती जहाँ और जिनके बीच होता हूँ कविता वहीं होती है

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जब से है एक चाँद

हिस्सा था एक भीड़ का कल तक जो आदमी रहता है अब हरेक से तन्हा कटा हुआशीशे में दिल के कोई तो उतरा जरूर था एक अक्स आइने में है अब तक जड़ा हुआपड़ते हैं पाँव राम के किस रोज देखिए

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हमेशा ख्वाब की दुनिया

उसे ये कौन बताए कि खींचा-तानी में किसी भी रिश्ते की हो डोर टूट जाती हैसभी के हाथ में ख़ंजर दिखाई देते हैं मगर ये भीड़ कहाँ सच को देख पाती हैजो देखना हो तो देखो बरसते पानी में तभी सड़क की हक़ीक़त समझ में आती है

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जिक्र तेरा मेरे शहर में

जिक्र तेरा मेरे शहर में नहीं आईने में है तू नजर में नहीं वो महाजन भी रोज आता है मैं भी कहता हूँ कह दो घर में नहीं सारी दुनिया…

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