तुम्हारे नाम

खुशबू तेरी शब्द शब्द में छंद-छंद में रूप तुम्हारा पन्ने-पन्ने बरबस अंकित मधु मकरंद अनूप तुम्हारास्मृतियों में राग सुसज्जित जो मनहर रीत तुम्हारे नाम!

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अग्नि कोख में पलती अम्मा

कैसी भी हो विपदा चाहे उम्मीद दुआओं की उसको बिना थके ही बहते रहना सौगंध हवाओं की उसको चंदा-सा उगने से पहले सूरज जैसी ढलती अम्मा!

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संवेदनाऔ के हमराज

दोनों एक दूसरे की तरफ पीठ किए... औरत बच्चों को देख खिलखिलाती होगी। और आदमी उस अखबार को खोल शाम की ताजा खबर से अपना जी बहलाता होगा। उठते समय एक का घुटना दुखता होगा

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मेरे आस-पास

पुरखों के दिन फिर से आ गए पैर की चोट ने फिर लाचार कर दिया सीढ़ियाँ नहीं चढ़ पाता हूँ इन दिनों भी। जाने कहाँ से आकर छत पर कौवे बोला करते हैं सबसे नीचे वाली सीढ़ी के पास कुर्सी डालकर बैठ गया हूँ।

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रंग जमाना

रंग-बिरंगी इस दुनिया में अपना भी रंग जमाना मौसम चाहे जैसा भी हो तुम खिलना और खिलाना! अनुपम है यह देश हमारा अनुपम इसकी माटी है अनुपम है हर राग…

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एक कहानी

थोड़ी बरसात हुई जाने फिर भी भारी अफड़ा-तफड़ी मुखिया जी का कुनबा चौकस बता रहे सब लफड़ा-लफड़ीशोर मचा है गाँव नगर में चौकन्ने हैं गली-मोहल्ले!

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