धरती

तुम्हारे होने भर से धरती महसूसती थी अपनापन और प्यार ऐसा कि तुम हो अपने धरती पर बरसाने वाले स्नेहहीरा-मोती तुम जोतते थे मुझे तो लगता था कि रूई के फाल से

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मुख्यधारा के झाँसे से बाहर की कहानियाँ

संग्रह में सुरेश उनियाल की सभी कहानियाँ जीवन से जुड़े सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक भी, पक्ष से सीधे तादात्म्य स्थापित करती हैं। कहानियों की भाषा जमीनी है और अभिव्यक्ति सूझ-बूझ के साथ पाठक में विलय होने में समर्थ है।

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मैं गाँव पर ही क्यों लिखती हूँ

‘मैं गाँव पर क्यों लिखती हूँ’ का जवाब इस सवाल में छिपा है कि मैं क्यों लिखती हूँ! इतने सारे काम थे करने के लिए और एक स्त्री को तो काम बताने वाले लोग पहले से ही मौजूद रहते हैं, घर के बाहर भी...घर के भीतर भी।

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हमें तुमसे जुदा होना भी होगा

हमें तुमसे जुदा होना भी होगा वो दिन जब आएगा मरना ही होगातसव्वुर में भी शायद मैंने कोई नया कपड़ा कभी पहना भी होगा

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एक दीया भारत माँ के नाम

आओ मिलकर जलाएँ एक दीया भारत माँ के नामदेश के जन-जन की है यही पुकार अब नहीं जलाएँगे चाईनीज दीये, बल्ब और लड़ियाँ अब तो जलाएँगे सिर्फ अपनी माटी से बने दीये वे दीये, जिसे बनाए हैं हमारे कुम्भकारों ने अपने श्रम से अपनी मेहनत से

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पंडित विद्यानिवास मिश्र के ललित निबंध

ललित निबंध का प्रसंग आते ही मेरे सामने पद्मभूषण पंडित विद्यानिवास मिश्र की निर्मल छवि उभर आती है। क्या दिव्य व्यक्तित्व की आभा थी उनमें! बोलते तो उनकी जुबान से पूरबी की संस्कृति झरने लगती और लिखते तो जैसे उनके अथाह ज्ञान का सोता देसी संस्कृति में घुल-मिलकर असंख्य प्राणियों के तप्त हृदय को संतृप्त कर देता! पहली बार उनसे वर्ष 1988 में अपने गुरु आचार्य देवेंद्रनाथ शर्मा के सौजन्य से पटना स्थित उनके ही निवास पर मिला था।

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