गिव अप करने के लिए

चहुँ ओर गिव अप की बहार छाई है। देखो, कोयल सरकार का अनुरोध मानकर अपनी कूक को पूरी तरह गिव अप कर कौए की भाषा में काँव-काँव कर रही है। बिल्लियाँ दूध को गिव अप कर चाय का सेवन कर रही हैं। मुर्गों ने बाँग देना गिव अप कर दिया है। कुत्तों ने भौंकना गिव अप कर दिया। सारा माहौल गिव अप मय हो गया है। यह दिन पहले कहाँ था, यह समय पहले कहाँ थे। देखो, सब ओर गिव अप ही गिव अप हैं चहुँ ओर गिव अप की बहार है।

और जानेगिव अप करने के लिए

एक जहरीला प्रश्न

रोज की तरह आज भी सेठ नागरमल अपने कुत्ते को सुबह का नाश्ता करा रहे थे। कुत्ते उछल-उछल कर सेठ जी के हाथों से बिस्कुट खा रहे थे। सुबह की गुनगुनी धूप में नरम-नरम घास पर कुत्तों का उछलना और लुचक-लुचक कर उनके हाथों से बिस्कुट लेना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था। उसी समय उनकी नौकरानी का आठ वर्षीय बेटा भी वहाँ आकर खड़ा हो गया और ललचायी दृष्टि से बिस्कुट खाते कुत्तों को देखने लगा।

और जानेएक जहरीला प्रश्न

दृष्टि

वह किसी बड़े स्टेशन के प्रतीक्षालय में सोफे पर बैठी किसी गाड़ी की प्रतीक्षा में थी। उसकी गाड़ी के आने में संभवतः एक-डेढ़ घंटे की देर थी। वक्त गुजारने के ख्याल से वह किसी हिंदी पत्रिका के पन्ने पलटती हुई कोई रुचिकर सामग्री ढूँढ़ने में व्यस्त थी। वह अपनी एक टाँग दूसरी टाँग पर चढ़ाकर कुछ इस तरह बैठी थी कि स्कर्ट के अंदर से उसकी गोरी, चिकनी जाँघ स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। प्रतीक्षालय के दूसरे कोने में बैठा बुजुर्ग उसकी इस स्थिति पर बुदबुदाया, ‘आजकल का पहनावा तो निर्लज्जता की हद को भी पार कर गया है...।’

और जानेदृष्टि

एक तलाश ऐसी भी

बरगद की तलाश में टहलते अहसास को मैंने चेतावनी दी आगाह किया कुल्हाड़ियों की तेज धार से फिर भी जज्बात मुखर हो गए।लाख सँभाला समझाया दिखलाया राह के रोड़े रूसवाइयों के थपेड़े फिर भी उग आए

और जानेएक तलाश ऐसी भी

खरीदा हुआ गम

महानगर का एक भव्य जेन्ट्स पार्लर। ‘कहिए साहब क्या सेवा करूँ...?’ कस्टमर के कुर्सी पर बैठते ही मेकअप मैन ने पूछा। ‘वो बात यह है कि...’ कस्टमर ने धीमी आवाज में कहा, ‘मेरी कंपनी का हेड बॉस आज मर गया है...अभी उसी की शोक सभा में जाना है।’ ‘अच्छा तो गम का मेकअप चढ़वाना है।’ ‘हाँ, तुमने ठीक समझा...कुछ ऐसा मेकअप चढ़ाओ कि मैं ओरिजिनल दुःखी दिखाई दूँ...मतलब उसके रिश्तेदारों पर मेरे गम का गहरा असर होना चाहिए...।’

और जानेखरीदा हुआ गम

‘कथालोचना के विकास में विजयमोहन सिंह का महत्तर योगदान रहा’–केदारनाथ सिंह

इस अवसर पर ‘नई धारा’ की संचालिका शीला सिन्हा द्वारा कवि केदारनाथ सिंह को नौंवें उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से विभूषित करते हुए उन्हें एक लाख रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र प्रदान किए। ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने उपन्यासकार पद्मश्री डॉ. उषाकिरण खान, व्यंग्यकार डॉ. प्रेम जनमेजय तथा कथाकार शंभु पी. सिंह को ‘नई धारा रचना सम्मान’ से नवाजते हुए उन्हें 25-25 हजार रुपये सहित सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न एवं अंगवस्त्र आदि अर्पित किए। आरंभ में स्वागत भाषण करते हुए ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ. प्रमथ राज सिंह ने कहा कि ‘नई धारा’ केवल साहित्यिक पत्रिका भर नहीं, बल्कि हमारे लिए एक रचनात्मक अभियान है, जहाँ साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक सकारात्मक दिशा देना चाहते हैं। यही ‘नई धारा’ की विरासत और परंपरा है।

और जाने‘कथालोचना के विकास में विजयमोहन सिंह का महत्तर योगदान रहा’–केदारनाथ सिंह