कविताओं में सामयिक यथार्थ
मानव जीवन की विविध घटनाओं का मार्मिक चित्रण अशोक चक्रधर के साहित्य का आधार है। उनकी अधिकांश कविताओं में मर्मांतक पीड़ा पहुँचाने वाले जीवन-प्रसंगों का वर्णन हुआ है। कहीं वह दहेज से जुड़ी हुई समस्याओं को दृश्यों में रूपायित करते हैं तो कहीं बेरोजगारी के भयानक दृश्यों को दिखाते हैं। सांप्रत समाज में फैली हुई कूटनीतियों, बढ़ती हुई अमानवीयता, पारस्परिक द्वेष आदि की भयावहता से हँसाते-हँसाते परिचित कराते हैं। राजनीति पर लिखी गई उनकी रचनाएँ, उन कविताओं के समानांतर नहीं रखी जा सकती, जो नेताओं को हास्य का विषय बना कर सतही ढंग से लिखी गई हों। नेताओं पर यदि वह व्यंग्य भी कर रहे होते हैं तो उसमें उनकी संविधान की समझ होती है।