जैनेंद्र–जिनको मैं जान सका
मैंने प्रेमचंद को पढ़ा परंतु जैनेंद्र को मुझे समझना पड़ा। ‘त्यागपत्र’ मेरे लिए गीता रहस्य बन गया। इस गुत्थी को जितना सुलझाना चाहा, मैं उतना ही उलझता गया। भगवती प्रसाद वाजपेयी हमारे यहाँ आए तो मैंने उनसे ‘त्यागपत्र’ के बारे में चर्चा की। वह आदत के अनुसार कुछ देर तक सोचते रहे। फिर वह बोले, “जैनेंद्र विचारक हैं, दार्शनिक बनते हैं। इसकी छाप उसके साहित्य पर है इसलिए वहाँ भी उसका पाठक उलझ जाता है।” परंतु वह ‘त्यागपत्र’ पर कुछ नहीं कह सके।