जिंदगी का राज
स्मरण रहे कि उन दिनों शाहजहाँ को लकवा मार गया था इसलिए पूरे नाटक में वह अपने शरीर के आधे भाग से कोई भावभंगिमा नहीं दिखला सकता। बीच-बीच में उसका लकड़ी वाला हाथ धीरे-धीरे हिल जाता है और उसी ओर के होठ फड़क उठते हैं। आँखों से आँसू जारी हो जाते हैं और वह निरुपाय, हतबुद्धि-सा दर्शकों को देखता है।