जिंदगी का राज

स्मरण रहे कि उन दिनों शाहजहाँ को लकवा मार गया था इसलिए पूरे नाटक में वह अपने शरीर के आधे भाग से कोई भावभंगिमा नहीं दिखला सकता। बीच-बीच में उसका लकड़ी वाला हाथ धीरे-धीरे हिल जाता है और उसी ओर के होठ फड़क उठते हैं। आँखों से आँसू जारी हो जाते हैं और वह निरुपाय, हतबुद्धि-सा दर्शकों को देखता है।

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शरतचंद्र संबंधी मेरे संस्मरण (तीसरी कड़ी)

उस वर्ष (1923) रायटर ने यह समाचार प्रचारित कर दिया कि इस बार का साहित्य संबंधी नोबेल पुरस्कार किसी भारतीय लेखक को मिलने वाला है।

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स्याम का कला-पक्ष

थाई लोग कला के बड़े प्रेमी हैं। उनके जीवन से यह सत्य स्वयं प्रकट होता है। सुरुचि और व्यवस्था इनके जीवन के अंग बन गए हैं।

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