फ्लेन्यूज़*
मेरे हमशहर मेरे साथी हम दोनों का शहर विस्थापन है हम दोनों अपने विस्थापन में कितने दूर हैं मैं जब शहर की रातों में आवारगी से घूमती हूँ
मेरे हमशहर मेरे साथी हम दोनों का शहर विस्थापन है हम दोनों अपने विस्थापन में कितने दूर हैं मैं जब शहर की रातों में आवारगी से घूमती हूँ
धमनियों को लपेटूँगी अँगूठों पर और दिल को पैरों में पहन लूँगी एड़ी में सुनाई देगी धड़कन घुटने से नव्ज़ मिलेगी जब दरवाज़े से दाख़िल होऊँगी
जो भी मज़मून में नहीं बैठता रख दिया जाता है हाशिए पर कि जैसे हाशिए पर रखी है एक कविता एक अकादमिक नोटबुक के पन्ने पर हाशिए पर हैं वो लोग
खाई पाटी भी जा सकती है चट्टान लाँघी भी जा सकती है या अपनी ही तरफ़ बनाया जा सकता है एक छोटा-सा घर जहाँ हर ज़हनी बहस पहनी जाए