सवैया

हिय लेती लगाय सुधीरज को, करि देती बिना दुःख की छतिया बिकसाती कली मन की मुकुली, रसती रसना रस की बतिया तन पीरो परो कर देती हरो, जगती न बिताती सबै रतिया

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