‘शब्द की सत्ता ही निरंकुश सत्ताओं को मानवीयता के मार्ग पर ला सकती हैं’–माधव कौशिक

रचना का एक साध्य है जीवन का रंग। ‘वीणा’ के संपादक राकेश शर्मा ने कहा कि मेरे लिए सर्जना-कर्म एक उत्सव है, जिसमें अहं से वयं की यात्रा पूरी होती है।

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‘नई धारा’ के सम्मानों की घोषणा

कहानियों के चार संग्रह–‘पहला रिश्ता’, ‘क्रांति की मौत’, ‘हिन्दुस्तान की डायरी’ और ‘चन्दर की सरकार’ प्रकाशित हो चुके हैं, जबकि इसी वर्ष वृहत्काय उपन्यास ‘रामघाट पर कोरोना’ का प्रकाशन भी हुआ है।

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राजेन्द्र स्मृति सम्मान

पांडेय जी के व्यक्तित्व और कृतित्व का बहुकोणीय विवेचन तो किया ही है, उनके लेखन की बानगी का भी एक खंड ग्रंथ में है, जिसमें उनका अप्रकाशित उपन्यास ‘फरिश्ते’ भी है।

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‘स्त्री जितना दिखती है, सिर्फ उतनी भर ही नहीं होती’–सूर्यबाला

डॉ. सूर्यबाला 1 दिसंबर, 2021 को बिहार संग्रहालय के सभागार में आयोजित प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘नई धारा’ के अपने संस्थापक संपादक एवं प्रसिद्ध लेखक उदय राज सिंह के जन्मशती महोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थीं।

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‘भारतीय सभ्यता वाचिक परंपरा में विकसित होती रही’ –प्रो. चंद्रशेखर कंबार

प्राचीन भारतीय साहित्य का अधिकांश भाग बोलचाल के शब्दों का व्यक्त रूप है, जो संरक्षण की दृष्टि से वाचिक परंपरा की संपत्ति है। भारतीय इतिहास में लेखन का परिचय विदेशियों के प्रभाव से बाद में हुआ। पाश्चात्य सभ्यता पुस्तक केंद्रित है, जबकि भारतीय सभ्यता वाचिक परंपरा में विकसित होती रही।

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‘साहित्य रचने की प्रेरणा मुझे गाँव से मिलती है’–मैत्रेयी पुष्पा

व्याख्यान का विषय था–‘मैं गाँव पर ही क्यों लिखती हूँ।’ समारोह की अध्यक्षता चर्चित कवि एवं भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने की, जबकि संचालन ‘नई धारा’ के संपादक डॉ. शिवनारायण ने किया।

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