मेरा बचपन मेरा जीवन
अम्मा मुझे अबूझ पहेली लगतीं। हमलोग दिनभर भारी श्रीनाथ को गोद में टाँगे फिरते हैं। मैदान में खेलते कम इसकी चौकसी अधिक करते हैं कि कंकड़-पत्थर बीन कर न खा ले। लेकिन आम्मा आरोप लगाती हैं। अम्मा का असमंजस अब समझ में आता है।
अम्मा मुझे अबूझ पहेली लगतीं। हमलोग दिनभर भारी श्रीनाथ को गोद में टाँगे फिरते हैं। मैदान में खेलते कम इसकी चौकसी अधिक करते हैं कि कंकड़-पत्थर बीन कर न खा ले। लेकिन आम्मा आरोप लगाती हैं। अम्मा का असमंजस अब समझ में आता है।
असुरक्षा, अभाव और भटकाव का जो दर्द उसके सीने में उठा, उसने सहसा ही उसे एक आम भारतीय स्त्री में बदल दिया और वह मेरी उस भावुकता, जिसे वह प्यार करती थी, को कोसने लगी। बात बढ़ती गई और एक-दूसरे के प्रति विरोध, अविश्वास और अवज्ञा का भाव भी उग्र होता गया।
अपने विषय में सोचता हूँ तो पाता हूँ कि मेरा जन्म जगराँव (पंजाब) में हुआ। जगराँव या पंजाब से मेरा इतना ही नाता है कि मैं वहाँ पैदा हुआ और अपने जीवन के पहले नौ वर्ष पंजाब के अलग अलग उन शहरों में बिताए–जहाँ जहाँ, मेरे पिता का तबादला होता रहा।
‘युवक’ के साथ ही फिर मेरा जीवन घोर राजनीति का शुरू होता है, अत: उसे प्रारंभ करने के पहले मैं उन साहित्यिक गुरुजनों और साथियों की चर्चा कर लेना चाहता हूँ
फिर मेरे मामा जी से बोले–रामवृक्ष की शादी तो अब होनी चाहिए। और, लगे हाथों एक लड़की की चर्चा भी छेड़ दी।
उस दिन मेरी ममेरी बहन की बिदागरी थी। आँगन में, दरवाज़े पर धूम मची हुई थी। जिनके घर में बेटियाँ ही बेटियाँ हों, उनके घर में बेटियों के आदर-सम्मान का क्या कहना ?