नई धारा संवाद : अलका सरावगी से बातचीत
पसंद तो ज्यादा उपन्यास पढ़ना ही है पर असल में उपन्यास उतने नहीं पढ़े जाते हैं जब तक कि वो...जैसे अब ‘रेत समाधि’ पर रिव्यू लिखना था,
पसंद तो ज्यादा उपन्यास पढ़ना ही है पर असल में उपन्यास उतने नहीं पढ़े जाते हैं जब तक कि वो...जैसे अब ‘रेत समाधि’ पर रिव्यू लिखना था,
मैंने सोम ठाकुर जी से कहा कि ये तो इन्होंने गलत कर दिया! इतनी ऐसी बात थी कि बताने वाली नहीं थी तो ये इन्होंने क्यों बता दी! फिर उसी यात्रा में...मैं उनका आभारी हूँ
प्रसिद्ध साहित्यालोचक नंदकिशोर आचार्य जी! नंदकिशोर आचार्य जी की प्रतिभा जो है बहुमुखी और आज उनकी जो पहचान है
स्त्री विमर्श को लेकर या स्त्री अधिकारों को लेकर और स्त्री लेखन को भी अब ज्यादा गंभीरता से देखा, जाना, समझा जाने लगा है और बहुत सारी स्त्री लेखिकाएँ भी हैं जो बहुत अच्छा लिख रही हैं। तो अब आपको ये परिदृश्य जो है, ये उस परिदृश्य से जब आपने शुरू किया था तो कितना फर्क लगता है? इसकी अच्छी चीजें आपको क्या लगती हैं?
मैंने रवि से कहा, ‘रवि ये बताओ, ये भारत सरकार नहाने आई है, तुम इस जुमले के ऊपर कहानी लिखोगे।’
‘मर्द की जबान पकड़ना औरत के वश में कहाँ है बाबा? लेकिन यह बता देते कि कानून लिखा कहाँ जाता है, लिखता कौन है? तो चलकर उसी से फरियाद करते कि हमारे बालकिशन जैसों के जीने-खाने के लिए भी ‘दू अक्षर’ कानून लिख देते।’