नई धारा संवाद : कथाकार चित्रा मुदगल
ये कैसा बड़प्पन कि हमारे खेतों के अनाज जब इनके आँचल में जाता है तो वह छूने योग्य नहीं होता है!
ये कैसा बड़प्पन कि हमारे खेतों के अनाज जब इनके आँचल में जाता है तो वह छूने योग्य नहीं होता है!
अनेक गजलकार ऐसे भी हैं जिनकी गजलों में जीवनानुभव के अनेक आयाम हैं और लगता है कि गजल लिखने के लिए गजल नहीं लिख रहे हैं उनके भीतर की आवाज उनसे गजल लिखवा रही है। अदम गोंडवी तथा उन जैसे गजलकारों की लाउड गजलें तो गजल को एकांगी बनाकर छोड़ देंगी।
गजल का जो परंपरागत रूप रहा है, वह प्रेम का है। उर्दू गजल में भी हम इस परंपरागत रूप को देखते हैं। परंतु गजल के परंपरागत रूप के स्वर को हिंदी गजल ने बदला। संरचना वही रही परंतु विषय बदल गया। दुष्यंत प्रगतिशील विचारधारा के कवि थे।
पुस्तकें कभी समाप्त नहीं होंगी। एक तात्कालिकता है, जो चिरंतन नहीं हैं। लोग लौटेंगे, पुस्तकों की ओर लौटेंगे।
डॉ. कान्तिकुमार जैन पेशे से अध्यापक और फितरत से संस्मरणकार के अनुसार जो न्याय नहीं कर सकते उन्हें संस्मरण नहीं लिखने चाहिए।
वास्तव में, हिंदी-उर्दू विवाद घोर रूप से कूपमंडूक प्रकार के मस्तिष्क की देन है’ अवैज्ञानिक, अनप्रैक्टिकल केवल लड़ाई कराने वाली है।