अम्बेदकर और दलित हिंदी कविता
‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता और नए रचनात्मक सरोकार’ पर विचार करती हूँ तो सबसे पहले यह सवाल खड़ा होता है कि स्वातांत्र्योत्तर हिंदी कविता के नए रचनात्मक सरोकार क्या रहे हैं?…
‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता और नए रचनात्मक सरोकार’ पर विचार करती हूँ तो सबसे पहले यह सवाल खड़ा होता है कि स्वातांत्र्योत्तर हिंदी कविता के नए रचनात्मक सरोकार क्या रहे हैं?…
इस अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई का विस्तार डॉ. अम्बेडकर ‘जाति का विनाश’ और ‘अंतरजातीय विवाह’ के पक्ष में करते हैं। बाद में जाति के विनाश के प्रक्षिप्त को वे खुद समझ जाते हैं, इधर अंतरजातीय विवाह और प्रेम विवाह से कैसे दलितों के घरों की तबाही हो रही है किसी से छुपा नहीं है।
अब छुआछूतवादी कितने भी रूप धर लें वह तत्काल पहचान लिए जाने हैं। आदि हिंदू अर्थात आजीवक मानव सभ्यता के विकास में अपने योगदान को प्रतिबद्ध हैं। स्वामी अछूतानंद का योगदान आजीवक महापुरुष के रूप में दर्ज हो गया है।
कर्नाटक के दलित साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर कवि, नाटककार, निबंधकार ही नहीं, डॉ. सिद्धलिंगय्या कर्नाटक विधान परिषद के सदस्य, कन्नड़ प्राधिकार और कन्नड़ पुस्तक प्राधिकार के अध्यक्ष होते हुए भी स्वभाव से कोमल, मृदुभाषी, चिंतनशील व्यक्तित्व के धनी थे।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि श्यौराज सिंह बेचैन का पूरा साहित्य दलित साहित्य की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा उतरता है।
यह ‘मुखहिं जनाई बात’ ही दलित चिंतन की ‘मौखिक परंपरा’ रही है। अब प्रश्न उठता है कि दलित चिंतन की यह मौखिक परंपरा आई कहाँ से है? दलितों की यह मौखिक परंपरा महान आजीवक मक्खलि गोसाल से आई है।