इस बस्ती में रहते हैं कुछ गूँगे
इस बस्ती में रहते हैं कुछ गूँगे कुछ बहरे अपनी-अपनी कब्रों में जीते हैं मरे-मरेबिना धमाका किए न कोई कुछ सुनता है
इस बस्ती में रहते हैं कुछ गूँगे कुछ बहरे अपनी-अपनी कब्रों में जीते हैं मरे-मरेबिना धमाका किए न कोई कुछ सुनता है
नाम महफ़िल में मेरा उन्होंने लिया आज ढेरों सवालों से मैं घिर गयाहाथ जिसने बढ़ाया था मेरी तरफ़
बाद मेरे भी ये जहाँ होगा जाने फिर आदमी कहाँ होगामेरी आवाज़ हो न हो लेकिन मेरा लिक्खा हुआ बयाँ होगा
पत्ते-पत्ते, डाली-डाली कहते एक कहानी बोल रहीं गुमसुम शाखाएँ आँधी आने वालीअंधों की बारात चली है रस्ता कौन दिखाए
जो तसव्वुर था हमारा आप तो वैसे नहीं हैंजानते हैं आपको हम हाँ मगर कहते नहीं हैं बात करते हैं हमारी जो हमें समझे नहीं हैंजो पता तुम जानते हो
पास आना चाहता हूँ बस बहाना चाहता हूँआप से रिश्ता नहीं तो क्या निभाना चाहता हूँसिर्फ़ मुझसे ही रहे जो वो ज़माना चाहता हूँकाश ख़ुद भी सीख पाता जो सिखाना चाहता हूँजो मुझे हैं याद उनको याद आना चाहता हूँ।