मिलते तो मुँह पर सब हँसकर महफिल में
मिलते तो मुँह पर सब हँसकर महफिल में कैसे जानें, क्या है, कब, किसके दिल मेंलगता था ऊँचे घर का पहनावे से बोला ज्यों ही बदला वो फिर जाहिल मेंदो कदमों पर थककर यूँ रुकने वाले दूरी काफी बाकी अब भी मंजिल में
मिलते तो मुँह पर सब हँसकर महफिल में कैसे जानें, क्या है, कब, किसके दिल मेंलगता था ऊँचे घर का पहनावे से बोला ज्यों ही बदला वो फिर जाहिल मेंदो कदमों पर थककर यूँ रुकने वाले दूरी काफी बाकी अब भी मंजिल में
पहले वो अपना जाल रखते हैं हर सू कुछ दाने डाल रखते हैंआए हैं दुश्मनी निभाते जो दोस्ती की मिसाल रखते हैंउनकी बातों में झूठ क्या ढूँढ़ूँ पास जो काली दाल रखते हैं
रूप कंचन तपाकर निकाला हुआ जिस्म ऐसा कि साँचे में ढाला हुआचाँद निकला तो रौशन हुआ यह जहाँ तुमको देखा तो मन में उजाला हुआ
हर ओर खट रहे हैं, यूपी-बिहार हैं हम हर रोज पिट रहे हैं, सबके शिकार हैं हमघर में जो मिलती रोजी, क्योंकर भटकते दर-दर ललकार की है क्षमता, फिर भी गुहार हैं हमहम सबके खूँ-पसीने से जगमगाती दुनिया
बेड़ी औ जंजीर की भाषा सन-सन् चलते तीर की भाषामुझे नहीं अच्छी लगती है सत्ता की, शमशीर की भाषासीख रहा हूँ धीरे-धीरे तुलसी और कबीर की भाषा
चलती साँसें, वैभव कुदरत का दे रक्खा है सोचो हमको ईश्वर ने कितना दे रक्खा हैवह शै जिससे लोग खरीदे-बेचे जाते हैं नाम उसी को ही हमने पैसा दे रक्खा हैउससे सत्य-अहिंसा के दो सूत निकलते हैं