दिखाई दे रही है उसमें ख्वाब

दिखाई दे रही है उसमें ख्वाब की सूरत अँधेरी जिंदगी में आफताब की सूरतहरेक सिम्त पे बिखरी ख्याल की खुशबू छुपा के रखता है वो इक गुलाब की सूरतवो मेरी मुश्किलों में मेरे साथ रहता है

और जानेदिखाई दे रही है उसमें ख्वाब

मिलते तो मुँह पर सब हँसकर महफिल में

मिलते तो मुँह पर सब हँसकर महफिल में कैसे जानें, क्या है, कब, किसके दिल मेंलगता था ऊँचे घर का पहनावे से बोला ज्यों ही बदला वो फिर जाहिल मेंदो कदमों पर थककर यूँ रुकने वाले दूरी काफी बाकी अब भी मंजिल में

और जानेमिलते तो मुँह पर सब हँसकर महफिल में

पहले वो अपना जाल रखते हैं

पहले वो अपना जाल रखते हैं हर सू कुछ दाने डाल रखते हैंआए हैं दुश्मनी निभाते जो दोस्ती की मिसाल रखते हैंउनकी बातों में झूठ क्या ढूँढ़ूँ पास जो काली दाल रखते हैं

और जानेपहले वो अपना जाल रखते हैं

रूप कंचन तपाकर निकाला हुआ

रूप कंचन तपाकर निकाला हुआ जिस्म ऐसा कि साँचे में ढाला हुआचाँद निकला तो रौशन हुआ यह जहाँ तुमको देखा तो मन में उजाला हुआ

और जानेरूप कंचन तपाकर निकाला हुआ

हर ओर खट रहे हैं

हर ओर खट रहे हैं, यूपी-बिहार हैं हम हर रोज पिट रहे हैं, सबके शिकार हैं हमघर में जो मिलती रोजी, क्योंकर भटकते दर-दर ललकार की है क्षमता, फिर भी गुहार हैं हमहम सबके खूँ-पसीने से जगमगाती दुनिया

और जानेहर ओर खट रहे हैं

बेड़ी औ जंजीर की भाषा

बेड़ी औ जंजीर की भाषा सन-सन् चलते तीर की भाषामुझे नहीं अच्छी लगती है सत्ता की, शमशीर की भाषासीख रहा हूँ धीरे-धीरे तुलसी और कबीर की भाषा

और जानेबेड़ी औ जंजीर की भाषा