चलती साँसें, वैभव कुदरत का दे रक्खा है
चलती साँसें, वैभव कुदरत का दे रक्खा है सोचो हमको ईश्वर ने कितना दे रक्खा हैवह शै जिससे लोग खरीदे-बेचे जाते हैं नाम उसी को ही हमने पैसा दे रक्खा हैउससे सत्य-अहिंसा के दो सूत निकलते हैं
चलती साँसें, वैभव कुदरत का दे रक्खा है सोचो हमको ईश्वर ने कितना दे रक्खा हैवह शै जिससे लोग खरीदे-बेचे जाते हैं नाम उसी को ही हमने पैसा दे रक्खा हैउससे सत्य-अहिंसा के दो सूत निकलते हैं
पराया कौन है और कौन है अपना सिखाया है हमें तो ठोकरों ने सोचकर बढ़ना सिखाया हैनहीं हम हार मानेंगे भले हों मुश्किलें कितनी चिरागों ने हवाओं से हमें लड़ना सिखाया हैवही है चाहता हम झूठ उसके वास्ते बोलें हमेशा हमको जिसने सच को सच कहना सिखाया है
हम भी शहर गए थे कमाने, नहीं जुड़े मेहनत से, भागदौड़ से, दाने नहीं जुड़ेकोशिश तो की थी मैंने भी बचने की साफ-साफ पर सच कहूँ तो मुझसे बहाने नहीं जुड़ेधागे में गाँठ वाली थी रहिमन की बात सच एक-दूसरे से रूठे दीवाने नहीं जुड़े
फैसला दस-पचास में बदला और इक पेड़ घास में बदलाहर निराशा को आस में बदला जब अँधेरा उजास में बदलावो बदलना भला लगा था जब कोई अच्छे की आस में बदला
सुख की बाँहों में कभी प्यार से घेरे जाएँ और हम दुःख की तरफ आँख तरेरे जाएँजिस तरफ रहती है हर वक्त दीवारों पे नमी बस उसी ओर नयन धूप के फेरे जाएँसाँप जंगल की तरफ जाएँ मजे करते हुए और स्कूल सभी नन्हे सपेरे जाएँ
बचपन का दोस्त हाय! रे तन्हा पड़ा रहा डोली रवाना हो गई, झूला पड़ा रहादानी की आँख बोल पड़ी थी जरूर कुछ दरवेश मुड़ के चल दिया सिक्का पड़ा रहा