वक्त की बदली हुई तासीर है

वक्त की बदली हुई तासीर है मुँह पै ताले, पाँव में जंजीर हैझूठ, सच में फर्क मुश्किल हो गया किस तरह उलझी हुई तकरीर हैदर्द फैलाया दवाओं की तरह कौन सी राहत की ये तदवीर है

और जानेवक्त की बदली हुई तासीर है

हाँ उभरकर आ गया गुस्सा हमारे गाँव का

हाँ उभरकर आ गया गुस्सा हमारे गाँव का है खड़ा तनकर हर इक तबका हमारे गाँव कादर्द का इक दौर सा उट्ठा सियासी रूह में आज जब हर आदमी सनका हमारे गाँव काहिल गया सारा प्रशासन आ गया भूकंप सा

और जानेहाँ उभरकर आ गया गुस्सा हमारे गाँव का

जीवन एक वचन में मुश्किल है

जीवन एक वचन में मुश्किल है बाबा इतने थोड़े धन में? मुश्किल है बाबापितृपक्ष खरमास अशुभ की भेंट हुए शुभ हो पाए लगन में मुश्किल है बाबाढिबरी की लौ में संभव है पक जाए खिचड़ी मन ही मन में, मुश्किल है बाबा

और जानेजीवन एक वचन में मुश्किल है

आएगी किसके काम, कविता है

आएगी किसके काम, कविता है दूर से कर सलाम कविता हैपहले कविता बनाम जीवन थी आज कविता बनाम कविता हैजिंदगी में जो जी चुके हैं उसे फिर से जीने का नाम कविता है

और जानेआएगी किसके काम, कविता है

धूप से इमदाद मत लो सायबानो

धूप से इमदाद मत लो सायबानो फर्ज था सो कह दिया मानो न मानोपेशगी लो कर्ज से छुटकारा पाओ आ गया बाजार दरवाजे किसानोक्या करोगे जानकर कीमत जबाँ की खुद हिफाजत से तो हो ना बेजबानो!

और जानेधूप से इमदाद मत लो सायबानो

ओसारे में किसी कोने सजा कर

ओसारे में किसी कोने सजा कर मुझे रक्खा है घर ने हाशिये परतो इसमें दोष मेरा क्या है गुरुवर! मुझे दी ही गई थी मैली चादरमेरा अपराध है ऋषियों से पंगा मैं कलियुग ही रहूँगा हो के द्वापर

और जानेओसारे में किसी कोने सजा कर