आदमी का जब सफर तनहा
आदमी का जब सफर तन्हा हुआ है रास्ता उसके लिए लंबा हुआ हैखेलता है वो मेरे जज्बात से अब दिल मेरा उसके लिए ‘कोठा’ हुआ हैयह जरूरी तो नहीं मैला ही होगा
आदमी का जब सफर तन्हा हुआ है रास्ता उसके लिए लंबा हुआ हैखेलता है वो मेरे जज्बात से अब दिल मेरा उसके लिए ‘कोठा’ हुआ हैयह जरूरी तो नहीं मैला ही होगा
राम को रक्खा है मैंने अब तलक ईमान में कश्ती के पतवार हैं वे, आँधी और तूफान मेंहो रहा है सबका स्वागत अपने हिंदुस्तान में देखता है ईश को जो अपने हर मेहमान मेंजो भी गिनती कर रहे हैं बेटी की संतान में
हम बात अपने दिल की बता भी नहीं सके कुछ जज्ब ऐसे थे कि छुपा भी नहीं सकेरातें कटें सुकून से, सो दिन गँवा दिया बिस्तर पे मुश्किलों को भुला भी नहीं सकेहमने हजार शेर लिखे उसके वास्ते जिसको कि एक शेर सुना भी नहीं सके
क्या-क्या सोचा था न हुआ मिलकर भी मिलना न हुआवो मेरा चेहरा न हुआ उससे ये रिश्ता न हुआबरसों से जो मुझमें है क्यों मेरा अपना न हुआ
महल में बैठकर वह आमजन की बात करता है कोई आवारा मीरा के भजन की बात करता हैतेरे मुँह से सितम के खात्मे की बात यूँ लगती स्वयं रावण ही ज्यों लंका दहन की बात करता हैनहीं महफूज हैं अब बेटियाँ अपने घरों में भी जनकपुर में कोई सीताहरण की बात करता है
आप थे मुझमें निहाँ जिंदगी थी कहकशाँमिट चुके जिसके निशाँ था यहीं वो आशियाँक्यों जमाने को सुनूँ आपको सुनकर मियाँबात उसकी भी सुनो