हर तरफ़ इस जंग का अंजाम

इक हसीं दुनिया बसा कर उसने हमको सौंप दी इस मुहब्बत का सिला उसको मिला ऐसा कि बसहर मुहब्बत का बुरा अंजाम होता है मगर हर मुहब्बत करने वालों को नशा ऐसा कि बसयह मुहब्बत हर मरज़ की इक दवा है दोस्तो! ये ख़ुदा ने दी है सबको, वो असर होगा कि बस

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इस फ़िज़ा में ज़ह्र आख़िर

सारी दुनिया जल रही है नफ़रतों की आग में रात-दिन इसको हवा यूँ देने वाला कौन हैसारे मायावी शिकारी हैं हमारे आस-पास क्या पता किसके निशाने पर परिंदा कौन हैकोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई सिख ईसाई है

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यहीं पास कोई नदी गा रही है

ग़ज़ब की कशिश है सदाओं में उसकी मुझे दूर मुझ से लिए जा रही हैमैं देखूँ कि उसको सुनूँ शब ढले तक सरापा ग़ज़ल ख़ुद ग़ज़ल गा रही है

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धरती से अंबर तक

मुर्दा बनकर ज़िंदा तो रह लेते हम ज़िंदा दिखना सबके वश की बात नहीं हूनर, हिम्मत, मेहनत, खून-पसीने की मजदूरी लेते हैं हम, खैरात

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रोज आते रहें, रोज जाते रहें

जब मिलें आमने-सामने मोड़ पर देखकर आप-हम मुस्कुराते रहेंगम बसाए न घर में कभी देर तक गीत हो या ग़ज़ल गुनगुनाते रहेंप्यार की राह में ख़ूब फिसलन लगे

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लुभाने लगा है सगा धीरे धीरे

नयन वाण मासूमियत से चला तो असर दिल पे होने लगा धीरे धीरेयकीनन सबेरा जवाँ हो रहा जब मुहब्बत का सूरज उगा धीरे धीरेपिलाया जिसे दूध छाती का वो ही

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