उसने ख़ुद को पाने तक

बस किरदार बचाने तक  ज़िंदा है मर जाने तकसिर्फ़ मुझे ही सोचेगा  वो मुझ-सा हो जाने तकमुझको ढूँढ़ न पाएगा मुझमें गुम हो जाने तक ख़ुद ही बेपहचान हुआ 

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सुन लो जो सय्याद करेगा

आँखों ने ही कह डाला है  तू जो कुछ इरशाद करेगा एक ज़माना भूला मुझको एक ज़माना याद करेगा काम अभी कुछ ऐसे भी हैं जो तू अपने बाद करेगा 

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आँखों में मैख़ाने थे

आँखों में मैख़ाने थे वो कुछ और ज़माने थे‘ईलू’ जैसे शब्द कई  मैंने तुमसे जाने थे उनके दिल में मेरे भी  कुछ महफ़ूज़ ठिकाने थे

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क्या बनाऊँ आशियाँ

क्या बनाऊँ आशियाँ  कम पड़ेगा ये जहाँ बिजलियाँ ही बिजलियाँ और मेरा घर यहाँएक थे हम दो यहाँ  कौन आया दरमियाँढूँढ़ते हो क्यों निशाँ

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बतलाऊँ क्या-क्या न हुआ

बतलाऊँ क्या-क्या न हुआ  मैं खु़द भी अपना न हुआ  अब तक तो बिक जाता ही  मैं लेकिन सस्ता न हुआ मंज़िल मेरी ज़द में थी बस आगे रस्ता न हुआ

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ये न पूछो कि कौन सी दिल्ली

दिल है, दरिया है और प्यासे भी मीर ओ ग़ालिब की शायरी दिल्लीयूँ तो आए गए कई ज़ालिम बारहा लुट के फिर बसी दिल्ली

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