गुरबत भरी हयात में दौलत भी तो मिले

गुरबत भरी हयात में दौलत भी तो मिले घर के बड़े-बुजुर्गों की सोहबत भी तो मिलेहम आसमान को भी जमी पर उतार दें घर बार से मगर कभी फुरसत भी तो मिलेये चाँद तारे आपके कदमों में वार दें

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मेरा शीशे का घर देखा

मेरा शीशे का घर देखा उन हाथों में पत्थर देखापानी पानी पानी पानी ऐसा हमने मंजर देखानाम उसी का लेंगे हर पल जिसमें अपना तेवर देखाआँख न होगी गीली उसकी उसका गीला बिस्तर देखा

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जो मुझे भूला नहीं था

जो मुझे भूला नहीं था मैं कभी उसका नहीं थाक्यों सगा समझा उसे ही जो कभी मेरा नहीं थाआज खत में क्यों लिखा वो जो उसे लिखना नहीं था

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याद उसे यदि रखता और

याद उसे यदि रखता और होती मेरी भाषा औरथा उसका कुछ मंशा और लेकिन मैंने समझा औरगर वो रहता जिंदा और फिर मैं कुछ दिन मरता और

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पत्थरों को रस्ते से हर कदम हटाना है

पत्थरों को रस्ते से हर कदम हटाना है मंजिलें बुलाती हैं, रास्ता बनाना हैदिल हर एक बुराई से अपना यूँ बचाना है एक-एक पत्थर को आईना बनाना हैआसमाँ है मुट्ठी में, हौसला बढ़ाना है देखते रहो या रब, करके बस दिखाना है

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सच की कीमत रोज चुकानी पड़ती है

सच की कीमत रोज चुकानी पड़ती है खुद से भी यह हार छुपानी पड़ती हैपानी पीकर झूठ डकारें ले-लेकर भूखे घर की लाज बचानी पड़ती हैबाज-दफा दुश्मन भी काम आ जाते हैं अपनो से भी जान गँवानी पड़ती है

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