बिंब अंबर के मरने लगे

बिंब अंबर के मरने लगे आह! तारे भी भरने लगेधर्म, कैसे निभाएँगे वे जो वचन से मुकरने लगेस्वप्न की, बात कैसे करे स्वप्न से, लोग डरने लगेपा के आदेश नित आपके

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गरदनें भी कमाल करती हैं

गरदनें भी कमाल करती हैं चाकुओं से सवाल करती हैंएक वहाँ है जिसकी सदियों से बस्तियाँ देखभाल करती हैंदुनिया कपड़े बदलती है अपने सम्तें जब ख़ुद को लाल करती हैं

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जानता हूँ निजाम बदलेगा

जानता हूँ निजाम बदलेगा सिर्फ कुर्सी पे नाम बदलेगाआग, है चुनाव के मौसम अब चरागो का काम बदलेगाये फजाँ, नहीं बदलने की शहर का सिर्फ नाम बदलेगा

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लम्हा-लम्हा कुछ न कुछ खोने का दुख

लम्हा-लम्हा कुछ न कुछ खोने का दुख उम्रभर बेफायदा रोने का दुखआपने देखी हैं बस ऊँचाइयाँ आप क्या जाने दलित होने का दुखहम गरीबों की यही है ज़िंदगी जागने की फिक्र और सोने का दुख

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दिल पे इतना तो अख्तियार रहे

दिल पे इतना तो अख्तियार रहे रंज भी हो तो थोड़ा प्यार रहेकोई लम्हा तू हमसे मिल ऐसे उम्रभर तेरा इंतजार रहेलाजिमी ये भी है मुहब्बत में दर्द का पेड़ सायादार रहे

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धरती से अंबर तक ये हालात नहीं

धरती से अंबर तक ये हालात नहीं मंजिल को बादल ढक ले औकात नहींमुर्दा बनकर जिंदा तो रह लेते हम जिंदा दिखना सबके वश की बात नहींहूनर, हिम्मत, मिहनत, खून-पसीने की मजदूरी लेते हैं हम, खैरात नहीं

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