किरदार इस जहान में आला नहीं मिला
किरदार इस जहान में आला नहीं मिला मुझको किसी दीये में उजाला नहीं मिला‘जन्नत’ का ख्वाब देखने वाले तो हैं मगर जन्नत का दर्द बाँटने वाला नहीं मिलामेहनतकशों का दर्द वो समझेंगे क्या भला
किरदार इस जहान में आला नहीं मिला मुझको किसी दीये में उजाला नहीं मिला‘जन्नत’ का ख्वाब देखने वाले तो हैं मगर जन्नत का दर्द बाँटने वाला नहीं मिलामेहनतकशों का दर्द वो समझेंगे क्या भला
कोहरा है कि धुँधला-सा सपन ओढ़ रखा है इस भोर ने क्या नंगे बदन ओढ़ रखा हैआ छत पे कि खींचें कोई अपने लिए कोना आ सिर्फ सितारों ने गगन ओढ़ रखा हैकुछ खुल के दिखा क्या है तेरे नीलगगन में कैसा ये धुँधलका मेरे मन ओढ़ रखा है
हर एक मुश्किल में तप के खुद को, वो जैसे कुंदन बना रही है नदी के जैसे बना के रस्ता, मुकाम अपना वो पा रही हैन माँ पिता पर है बोझ अब वो, हुआ उलट है अब इसके बिल्कुल
जब मिलूँ उससे तो गमगीं दास्ताँ कोई न हो सामने मेरे खुदा हो, दरमियाँ कोई न होए खुदा अपनी नवाजिश से मुझे कर सरफराज अपनी मंजिल आप पाऊँ, मेहरबाँ कोई न होसाजिशें सब कुछ मिटाने की करे हैं चंद लोग जिंदगी का दूर तक नामोनिशाँ कोई न हो
वो अपने सिवा औरों की सोचा नहीं करते कुछ ऐसे शजर भी हैं जो साया नहीं करतेवो दौर कि आईना वो रखते थे सदा साथ ये दौर कि आईना गवारा नहीं करतेखुशरंग गुलाबों पे ही रखते हैं नजर वो मुरझाते हुए फूलों की परवा नहीं करते
जिंदगी तूने आजमाया है सर को तेरे नहीं झुकाया हैखत तेरा बार बार पढ़ते हुए अक्स चिट्ठी में झिलमिलाया हैजान कुर्बान करके सरहद पर कर्ज मिट्टी का भी चुकाया है