इतना हसीं कहाँ मेरा पहले नसीब था
इतना हसीं कहाँ मेरा पहले नसीब था तुमसे मिला नहीं था तो कितना गरीब थामेरा जो हो के भी कभी मेरा नहीं हुआ कोई नहीं वो और था मेरा हबीब थादेखा नहीं नजर उठा के भी कभी उसे
इतना हसीं कहाँ मेरा पहले नसीब था तुमसे मिला नहीं था तो कितना गरीब थामेरा जो हो के भी कभी मेरा नहीं हुआ कोई नहीं वो और था मेरा हबीब थादेखा नहीं नजर उठा के भी कभी उसे
समंदर की लहर पहचानता हूँ क्या करूँ लेकिन हवा का रूख बदलना चाहता हूँ क्या करूँ लेकिनमुझे मालूम है जाना मुझे है किस दिशा में पर मैं कश्ती की दशा भी देखता हूँ क्या करूँ लेकिन
उधर बुलंदी पे उड़ता हुआ धुआँ देखा इधर गरीब का जलता हुआ मकाँ देखाकिसी अमीर ने दिल तोड़ दिया था मेरा मुद्दतों मैंने उसी चोट का निशाँ देखावहम ये मिट गया मेरा कि सर पे छत ही नहीं नजर उठा के ज्यों ही मैंने आसमाँ देखा
सवाल ये है कभी क्या किसी ने सोचा है गरीब आदमी ही क्यों शिकार होता हैहुआ सबेरा गली में वो लगाता फेरा दुआ जबान पे है हाथ में कटोरा हैभले इनसान का मुश्किल है गुजारा यारो गधा वो है जो दूसरों का भार ढोता है
तुम रेशम-रेशम लगती हो गजलों की सरगम लगती होहरी घास पर मोती जैसी तुम शबनम-शबनम लगती होतुम मेरे उदास आँगन में पायल की छम-छम लगती हो
खता संगीन करने में लगे हैं वो दो को तीन करने में लगे हैंसमर्थन चाहिए मुर्दों का जिनको कफन रंगीन करने में लगे हैंजिन्हें दरिया को है सागर बताना वो, जल नमकीन करने में लगे हैं