इस फ़िज़ा में ज़ह्र आख़िर
सारी दुनिया जल रही है नफ़रतों की आग में रात-दिन इसको हवा यूँ देने वाला कौन हैसारे मायावी शिकारी हैं हमारे आस-पास क्या पता किसके निशाने पर परिंदा कौन हैकोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई सिख ईसाई है
सारी दुनिया जल रही है नफ़रतों की आग में रात-दिन इसको हवा यूँ देने वाला कौन हैसारे मायावी शिकारी हैं हमारे आस-पास क्या पता किसके निशाने पर परिंदा कौन हैकोई हिंदू कोई मुस्लिम कोई सिख ईसाई है
ग़ज़ब की कशिश है सदाओं में उसकी मुझे दूर मुझ से लिए जा रही हैमैं देखूँ कि उसको सुनूँ शब ढले तक सरापा ग़ज़ल ख़ुद ग़ज़ल गा रही है
मुर्दा बनकर ज़िंदा तो रह लेते हम ज़िंदा दिखना सबके वश की बात नहीं हूनर, हिम्मत, मेहनत, खून-पसीने की मजदूरी लेते हैं हम, खैरात
जब मिलें आमने-सामने मोड़ पर देखकर आप-हम मुस्कुराते रहेंगम बसाए न घर में कभी देर तक गीत हो या ग़ज़ल गुनगुनाते रहेंप्यार की राह में ख़ूब फिसलन लगे
नयन वाण मासूमियत से चला तो असर दिल पे होने लगा धीरे धीरेयकीनन सबेरा जवाँ हो रहा जब मुहब्बत का सूरज उगा धीरे धीरेपिलाया जिसे दूध छाती का वो ही
चल चलें बिखरे पड़े विज्ञान की योजना पटरी पे लाने के लिएदूर हो आपस की ये नाराज़गी आँख तरसे दिल मिलाने के लिएकाट ली जीवन चटाई पर मिले चार गज कुटिया बनाने के लिए