उम्र की राह में कुछ ऐसे भी लमहे आए

उम्र की राह में कुछ ऐसे भी लमहे आए जैसे अनमोल विरासत कोई हिस्से आएऐसी बस्ती कि अँधेरा ही अँधेरा था वहाँ रोशनी देने में सूरज को पसीने आएमिट गए लोग अँधेरों को मिटाने के लिए तब कहीं जा के ये थोड़े से उजाले आए

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किस बात की अकड़ है

किस बात की अकड़ है, किस बात पर तना है माटी है मोल तेरा, माटी से तू बना हैउसका मिजाज सारी दुनिया से है अजूबा रूठा तो ऐसे रूठा, मुश्किल से वो मना हैबच्चों को पाल लेना, उनके लिए तो मक्खन

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कब अनुकूल रहा मौसम

कब अनुकूल रहा मौसम दिल टूटा न टूटे हमइस दुनिया की रीत यही धूप जियादा साया कममरहम बाँटने वाले लोग माँग रहे हैं अब मरहमकौन चमन को छोड़ चला फूलों की हैं आँखें नम

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अगर मैं अक्स हूँ

अगर मैं अक्स हूँ तेरा, तो आइना है किधर मुझे बता दे जमाना, ये देखता है किधरमुझे तो रंजो-अलम से, कहीं फरार नहीं जिधर भुलाते हैं गम सब, वो मयकदा हे किधर

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तूने बख्शा है

तूने बख्शा है वो गम रक्खा है आँसुओं से खुद को नम रक्खा हैमेरे मौला मेरी इज्जत रखना राहे-उल्फत में कदम रक्खा हैखंजर, तीरो-कमां छोड़ दिया अपने हिस्से में कलम रक्खा हैहमसे नाराज नहीं हैं बेटे बाप होने का भरम रक्खा है

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बादलों पर टहल रही है धूप

बादलों पर टहल रही है धूप रंग कितने बदल रही है धूपकारवाँ बादलों का क्या निकला साथ साये के चल रही है धूपशाम ने रुख जरा-सा क्या बदला और सज के निकल रही है धूपआग ऐसी लगी है सहरा में

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