अपने मित्रों के लेखे-जोखे से
अपने मित्रों के लेखे-जोखे से हमको अनुभव हुए अनोखे -सेहमने बरता है इस जमाने को तुमने देखा है बस झरोखे सेजिंदगी से न यूँ करो बर्ताव जन्म जैसे हुआ हो धोखे से
अपने मित्रों के लेखे-जोखे से हमको अनुभव हुए अनोखे -सेहमने बरता है इस जमाने को तुमने देखा है बस झरोखे सेजिंदगी से न यूँ करो बर्ताव जन्म जैसे हुआ हो धोखे से
समझ के सोच के ढर्रे बदल दिए जाएँ अब इंकलाब के नुस्खे बदल दिए जाएँअब अपनी अपनी किताबें सँभाल कर रखिए कहीं ये हो न कि पन्ने बदल दिए जाएँअब इनमें कुछ खुली आँखें दिखाई पड़ती हैं पुराने पड़ चुके पर्दे बदल दिए जाएँ
बेजान जानकर नहीं गाड़ा हुआ हूँ मैं बाकायदा उमीद से बोया हुआ हूँ मैंकोई नहीं निगाह में जिस ओर देखिए सहरा में हूँ कि शहर में अंधा हुआ हूँ मैंमाना कि आप जैसा धधकता नहीं मगर छू कर मुझे भी देखिए तपता हुआ हूँ मैं
रूह के अंदर बैठने वाले जिस्म के बाहर बैठे हैं मुझमें जाने कितने प्यासे पी के समंदर बैठे हैंदेख लिया न मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों गिरिजाओं में अब देखो मयखानों में भी कितने कलंदर बैठे हैंकितना अजब तसव्वुफ है ये कितनी बड़ी खुमारी है रूह की बातें सोचने वाले जिस्म के अंदर बैठे हैं
समझ में आई सीरत उसकी जब खुल गई हकीकत उसकीकासा हाथ में ले आई है फिर इस बार जरूरत उसकीसूरज को जी जान से चाहा महँगी पड़ी मुहब्बत उसकीजुबाँ जरा सी फिसल गई क्या
तसल्ली हो भी जाएगी तो हैरानी न जाएगी किसी को ग़म सुनाने से परेशानी न जाएगीअदाकारी अगर सीखी नहीं तो मात खाओगे