धो रहे हैं खूँ से खूँ के दाग़ नंदीग्राम में

धो रहे हैं खूँ से खूँ के दाग़ नंदीग्राम में बुझ सकेगी आग से क्या आग नंदीग्राम में छिन गया है चैन सकते में है मेहनतकश किसान

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मैं जब खुद को समझा

मैं जब खुद को समझा और मुझमें कोई निकला औरयानी एक तजुरबा और फिर खाया इक धोखा औरहोती मेरी दुनिया और तू जो मुझको मिलता और

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तू तो एक बहाना था

तू तो एक बहाना था मुझको धोखा खाना थामौसम रोज सुहाना था उसका आना-जाना थाआईना दिखलाना था उसको यूँ समझाना था

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मुझको जिस्म बनाकर देख

मुझको जिस्म बनाकर देख इक दिन मुझमें आकर देखजिसका उत्तर तू खुद है अब वो प्रश्न उठाकर देखअच्छा अपने ‘खुद’ को तू खुद में ही दफनाकर देख

और जानेमुझको जिस्म बनाकर देख