कभी आके इधर हरियालियों पे बात

कभी आके इधर हरियालियों पे बात करते हैं उधर जाके समुंदर में कहीं बरसात करते हैंहमें दिन-रात क्या मालूम, उनको ही पता ये सब जगाकर दिन वे करते हैं सुलाकर रात करते हैंलगाकर आग दरिया में, सुरक्षित बच निकलते खुद किनारे बैठकर कहते कि तहकीकात करते हैं

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बातों से तो प्यार उड़ाए जाते हो

बातों से तो प्यार उड़ाए जाते हो हाथों से अंगार उड़ाए जाते होजुमले बस दो-चार उड़ाते थे पहले अब तो रोज हजार उड़ाए जाते होचिनगारी क्या कम थी आग लगाने को जो इतना अंगार उड़ाए जाते हो

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आपसे नजदीकियाँ हैं

आपसे नजदीकियाँ हैं इसलिए तन्हाइयाँ हैंआसमाँ पर ये सितारे आपकी रानाइयाँ हैंआशियाँ है खास तो क्या बिजलियाँ तो बिजलियाँ हैं

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मुझको अपने पास बुला कर

मुझको अपने पास बुला कर तू भी अपने साथ रहा करअपनी ही तस्वीर बना कर देख न पाया आँख उठा करबे-उन्वान रहेंगी वर्ना तहरीरों पर नाम लिखा कर

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तुम जिसे शाम या सहर कहते

तुम जिसे शाम या सहर कहते हम उसे सिर्फ दोपहर कहतेबर्फ पिघली कि खुल गए रस्ते मौसमी ही है ये असर कहतेदेख लोगे धुआँ भी दरिया का थम जरा आँख में ठहर, कहते

और जानेतुम जिसे शाम या सहर कहते

जंग फिर से वही ठनी तो नहीं

बात बातों से भी बनी तो नहीं जंग फिर से वही ठनी तो नहींचाय की चुस्कियाँ चलीं कितनी पर हुई कम भी दुश्मनी तो नहींबात में भी तनाव इतना था मेज भी रह गई तनी तो नहीं

और जानेजंग फिर से वही ठनी तो नहीं