कहीं वे कर न लें सबके यकीन पर कब्जा
कहीं वे कर न लें सबके यकीन पर कब्जा जिन्होंने कर लिया सारी जमीन पर कब्जाबदल गए हैं समय और समझ के पैमाने जमाए बैठे हैं जाहिल जहीन पर कब्जा
कहीं वे कर न लें सबके यकीन पर कब्जा जिन्होंने कर लिया सारी जमीन पर कब्जाबदल गए हैं समय और समझ के पैमाने जमाए बैठे हैं जाहिल जहीन पर कब्जा
कटे जंगल की मिट्टी रो रही है लकड़हारे को फाँसी हो रही हैउसी से लहलहाएगा मुकद्दर तेरी सुहबत जो मुझमें बो रही है
चमन से दगा बागवाँ जब करेगा तो फिर खैर से कैसे गुँचा खिलेगाधुआँ उठ रहा हो नशेमन में जिसके तो घुट-घुट के कैसे परिंदा जिएगा
हाथ में जब सभी के ही पत्थर रहे किस तरह फिर सलामत कोई सर रहेतोड़कर सारी दीवारें मैं आ गया कैद कब तक कोई घर के अंदर रहे
मैं भी रहने लगा गम से गाफिल बहुत रात दिन अब तड़पने लगा है दिल बहुतयूँ हुई रोज पत्थर की बारिश यहाँ सब के सब सर मिले हमको घायल बहुत
जो बारे मुहब्बत उठाया न होता सितम आपने मुझ पे ढाया न होताअगर जानते आप भी बेवफा हैं कभी आपसे दिल लगाया न होता