आदमी अब नहीं आदमी दोस्तों

आदमी अब नहीं आदमी दोस्तों किस तरह से हो बसर जिंदगी दोस्तोंरौशनी में मुझे नींद आती नहीं डस गई है मुझे चाँदनी दोस्तों

और जानेआदमी अब नहीं आदमी दोस्तों

ऐसा न हुआ तो

ऐसा न हुआ तो कहीं वैसा न हुआ तो सोचा किए हैं हम वही सोचा न हुआ तोकश्ती को सर पे लेके चला जा तो रहा हूँ रस्ते में तेरे घर की जो दरिया न हुआ तो

और जानेऐसा न हुआ तो

बस आखिरी यही तो

बस आखिरी यही तो इक रस्ता है, बात कर यों चुप्पी साधने से तो अच्छा है, बात करपिघलेगी बर्फ कर भी यकीं हो न यूँ उदास क्यूँ सर को थाम के यहाँ बैठा है, बात कर

और जानेबस आखिरी यही तो

दिखाई देता है

अजीब शाम का मंजर दिखाई देता है जब आफताब जमीं पर दिखाई देता हैमुझे तो नीलगगन के विराट आँगन में हसीन चाँद पे इक घर दिखाई देता है

और जानेदिखाई देता है