पतझरों का मौसम है

पतझरों का मौसम है पत्तियाँ नहीं मिलतीं गुल नजर नहीं आते तितलियाँ नहीं मिलतीबस्तियों में दहशत है लोग हैं डरे सहमे अब खुली हुईं घर की खिड़कियाँ नहीं मिलतीं

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रात भर जागा हूँ

ख्वाब है तो ख्वाब जैसा ही रहे भीड़ का बन जाए ये परचम नहींखुद पे जाने कब तुझे हँसना पड़े गम निभा लेने का तुझमें दम नहींतेरा कहलाने का मतलब ये न था तू ही तू में ही रहें, हम, हम नहीं

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अग्नि कोख में पलती अम्मा

कैसी भी हो विपदा चाहे उम्मीद दुआओं की उसको बिना थके ही बहते रहना सौगंध हवाओं की उसको चंदा-सा उगने से पहले सूरज जैसी ढलती अम्मा!

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रंग जमाना

रंग-बिरंगी इस दुनिया में अपना भी रंग जमाना मौसम चाहे जैसा भी हो तुम खिलना और खिलाना! अनुपम है यह देश हमारा अनुपम इसकी माटी है अनुपम है हर राग…

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एक कहानी

थोड़ी बरसात हुई जाने फिर भी भारी अफड़ा-तफड़ी मुखिया जी का कुनबा चौकस बता रहे सब लफड़ा-लफड़ीशोर मचा है गाँव नगर में चौकन्ने हैं गली-मोहल्ले!

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मुश्किलों की तोड़कर जंजीर

छेड़िए मत गाँव की दुखती रगों को यूँ उसकी रग-रग में युगों की पीर निकलेगीवह भले धनवान हो जाए मगर उसमें लोभ के प्राचीर की तामीर निकलेगीसच तो ये है जानते हैं जितना हम, उससे देश की हालत कहीं गंभीर निकलेगी

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