खड़े तैयार हैं ‘बगुले’ सभी नदियों, फसीलों पर
खड़े तैयार हैं ‘बगुले’ सभी नदियों, फसीलों पर चुनेंगे देश द्रोही ये तो अब तेरे इशारों परपहाड़ों का भी अपनापन नहीं मंजूर अब जिनको जलाएँगे हमें अब तो वो सूरज के शरारों पर
खड़े तैयार हैं ‘बगुले’ सभी नदियों, फसीलों पर चुनेंगे देश द्रोही ये तो अब तेरे इशारों परपहाड़ों का भी अपनापन नहीं मंजूर अब जिनको जलाएँगे हमें अब तो वो सूरज के शरारों पर
अब पतंगें इश्क की जम कर उड़ाओ दोस्तो अपने हाथों का हुनर कुछ तो दिखाओ दोस्तोकाठ की घोड़ी ने जा कर चाँद तारों से कहा इस गगन की सैर मुझको भी कराओ दोस्तो।
न तुमने दुश्मनी में ही कमी की निभाई भी रिवायत दोस्ती कीकुहासों से निकलना चाहता हूँ उजालों तक पहुँच है क्या किसी की
तमंचे को सटाकर कनपटी से बदल जाएगा सच क्या हेकड़ी से?हमारी दोस्ती है प्यास से लेकिन हमारी दुश्मनी है क्यों नदी से?अँधेरों से लड़ेंगी कल को ये ही लिखी हैं हमने गजलें रोशनी से
पत्थरों का शहर पत्थरों की जुबाँ?तुमको पूछें कहाँ तुमको ढूँढें कहाँ?तुमको देखा तो सौ-सौ बहारें खिली
कौन बचपन छीन कर हमको जवानी दे गया भोलेपन, मस्ती के बदले बेईमानी दे गयानाव कागज की, तितलियाँ, आम, अमरख, इमलियाँ ले के कागज पर छपीं कुछ लंतरानी दे गयाकुछ नसीहत, वर्जना, और मन का जिद्दीपन