गुज़ारी अपनी ही मर्जी से जिंदगी तुमने

गुज़ारी अपनी ही मर्जी से जिंदगी तुमने कभी किसी की ज़रा-सी भी क्या सुनी तुमनेज़रा-सा हँस के कभी बोल क्या दिया उससे कि शक के घेरे में रख दी वफा मेरी तुमने

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मुसाफिर थक के जब प्यासा भी होगा

मुसाफिर थक के जब प्यासा भी होगा घने जंगल में इक दरिया भी होगाकभी जब आएगी गलती समझ में किए पर अपनी शर्मिंदा भी होगादुखों को आँसुओं में गर बहा दो तो मन से बोझ कुछ हल्का भी होगा

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दर्द भी साथ रख नमी के लिए

दर्द भी साथ रख नमी के लिए बीज बोने हैं कुछ खुशी के लिएकाम बेमन का करना पड़ता है दूसरों की कभी खुशी के लिएमेरी दुनिया में है यही काफी पास जुगनू है रोशनी के लिए

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या तो हमारा नाम हवा

या तो हमारा नाम हवा में उछाल दे या फिर शिकन की धूप से बाहर निकाल देप्यासों की इस जमात में बादल के नाम पर होंठों पे आँसुओं का समंदर ही ढाल देजमने लगी है बर्फ जो रिश्तों के दरमियाँ आए कोई करीब लहू को खँगाल दे

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महकी हुई बहार में फूलों

महकी हुई बहार में फूलों की राह से चूमा है मेरा नाम किसी ने निगाह सेवो जो है एक हर्फ तेरी याद से जुड़ा निकला नहीं है आज भी मेरी पनाह सेसच फिर से मुजरिमों के ही पैरों पे जा गिरा हासिल न कर सकी जो अदालत गवाह से

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समझने के लिए लहजे

समझने के लिए लहजे बहुत हैं जुबान से क्या कहूँ किस्से बहुत हैंहवा के साथ मैं जाऊँ कहाँ तक मेरे होने के भी चर्चे बहुत हैंनहीं जो आँधियों से खौफ खाते चिरागों की तरह जलते बहुत हैं

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