पास तुम्हें पाता हूँ
जब भी बहुत अकेला होता, पास तुम्हें पाता हूँ परेशानियों में रह कर भी हरदम मुस्काता हूँबिन खिड़की, बिन दरवाजे का घर इक, घना अँधेरा, उसके अंदर बंद हुआ मैं–अक्सर सपनाता हूँयक्ष रामगिरी पर मैं शापित, बेवश क्या कर सकता? बहुरें दिन, इस इंतजार में मेघदूत गाता हूँ