तीन गज़लें
कब-कहाँ होता है मेरा आना-जाना ये तो पूछ किसके-किसके है खयालों में ठिकाना ये तो पूछहम न जीते हैं न जीतेंगे कभी शायद मगर चाहता है क्यों कोई हमको हराना ये तो पूछ
कब-कहाँ होता है मेरा आना-जाना ये तो पूछ किसके-किसके है खयालों में ठिकाना ये तो पूछहम न जीते हैं न जीतेंगे कभी शायद मगर चाहता है क्यों कोई हमको हराना ये तो पूछ
आज तनहाई में यादों के तले मैंने हासिल किये हैं ग़म के क़िले
अँधेरे में मैं ठोकरें खा रहा हूँ। खुद अपनी नज़र से गिरा जा रहा हूँ।।
दिल में गई उदासी सूरत पे आ रही है चंदा की चाँदनी से धरती नहा रही है!