कि आँखों में आँसू को मलना पड़ा था
कि आँखों में आँसू को मलना पड़ा था उसे जब सँवर के निकलना पड़ा था जमाने की वहशी नजर लग न जाए जरूरत का दामन बदलना पड़ा था
कि आँखों में आँसू को मलना पड़ा था उसे जब सँवर के निकलना पड़ा था जमाने की वहशी नजर लग न जाए जरूरत का दामन बदलना पड़ा था
कब-कहाँ होता है मेरा आना-जाना ये तो पूछ किसके-किसके है खयालों में ठिकाना ये तो पूछहम न जीते हैं न जीतेंगे कभी शायद मगर चाहता है क्यों कोई हमको हराना ये तो पूछ
आज तनहाई में यादों के तले मैंने हासिल किये हैं ग़म के क़िले
अँधेरे में मैं ठोकरें खा रहा हूँ। खुद अपनी नज़र से गिरा जा रहा हूँ।।
दिल में गई उदासी सूरत पे आ रही है चंदा की चाँदनी से धरती नहा रही है!