सख्त रास्ते हैं मगर चल रही है
सख्त रास्ते हैं मगर चल रही है ज़िंदगी बार-बार गिर रही, सँभल रही है ज़िंदगी हँस रही है फूल अगर हँस रहे हैं राह में कंटकों के बीच भी मचल रही है ज़िंदगी
सख्त रास्ते हैं मगर चल रही है ज़िंदगी बार-बार गिर रही, सँभल रही है ज़िंदगी हँस रही है फूल अगर हँस रहे हैं राह में कंटकों के बीच भी मचल रही है ज़िंदगी
लोगों से नहीं, माल से है प्यार हो गया घर घर न रहा आज है बाज़ार हो गया संवाद था दुनिया की हक़ीक़त के बीच जो लथलथ लहू से आज वो अख़बार हो गया
सब उलटा-सीधा करते हो मिलकर भी तन्हा करते होचिंगारी सी क्या अंदर है सारी रात हवा करते होघर में ज्यादा भीड़ नहीं है छत पे क्यों सोया करते हो
चल खला में कहीं रहा जाए चुप कहा जाए चुप सुना जाएतू कभी रूह तक भिंगा हमको तू कभी रूह में समा जाएघर से निकले तो दश्त में आए अब यहाँ से किधर चला जाए
कहानी सुन न पाओ तो कहानी देखते जाओ दिए जो जख्म तुमने वो निशानी देखते जाओ।बहुत से गाँवों को खोकर कहीं इक शहर बसता है तरक्की की है यह असली कहानी देखते जाओ
खड़े तैयार हैं ‘बगुले’ सभी नदियों, फसीलों पर चुनेंगे देश द्रोही ये तो अब तेरे इशारों परपहाड़ों का भी अपनापन नहीं मंजूर अब जिनको जलाएँगे हमें अब तो वो सूरज के शरारों पर