हर सुकूँ दूर है
आज़माने की आदत ने यह क्या किया बेवज़ह हो गया फासला आपसेहारता ही रहा मेरा दिल क्या करे जब मिला ही नहीं हौसला आपसे
आज़माने की आदत ने यह क्या किया बेवज़ह हो गया फासला आपसेहारता ही रहा मेरा दिल क्या करे जब मिला ही नहीं हौसला आपसे
बला की धूप में क्या-क्या किसान देखते हैं कभी जमीन कभी आसमान देखते हैंकहाँ गए वो सिपाही जो हमसे कहते थे हम अपने गाँव में हिंदोस्तान देखते हैंसड़क का दर्द हवाई जहाज क्या जाने
मैं ‘अशोक’ हूँ मैं ‘मिजाज’ भी मैं इकाई हूँ, मैं समाज भीकहीं सख्त हूँ कहीं नर्म भी मैं उसूल भी हूँ, रिवाज भीमैं ही आप अपना लिबास हूँ मैं बटन भी हूँ, मैं ही काज भी
नींद कानून के रखवालों की गहरी देखी दोपहर बाद तो मुनसिफ ने कचहरी देखीआज भी देखने मिलता है गुलामी का असर कोट पहने हुए गर्मी की दुपहरी देखी
शाम का अक्स दरो बाम पे उतरा होगा हुस्न चेहरे का तेरा और भी निखरा होगावो मेरा साथ निभाएगा भला यूँ कब तक जिसकी आँखों में किसी और का चेहरा होगादेखकर सूखे दरख़्तों को मुझे लगता है
जितनी लगती है सुर्ख़ आज इतनी ये तो न थी ज़िदगी ज़ख़्मी थी मगर लहू-लहू तो न थी क्या हुआ उनको क्यों वो कर रहे हैं मुझको सलाम