अँधेरे में मैं ठोकरें खा रहा हूँ। Post author:sanjay.panday Post published:May 1, 1953 Post category:काव्य धारा Post comments:0 Comments अँधेरे में मैं ठोकरें खा रहा हूँ। खुद अपनी नज़र से गिरा जा रहा हूँ।। और जानेअँधेरे में मैं ठोकरें खा रहा हूँ।
दिल में गई उदासी सूरत पे आ रही है Post author:sanjay.panday Post published:January 1, 1952 Post category:काव्य धारा Post comments:0 Comments दिल में गई उदासी सूरत पे आ रही है चंदा की चाँदनी से धरती नहा रही है! और जानेदिल में गई उदासी सूरत पे आ रही है