कोने में बैठी है मुनिया
कोने में बैठी है मुनियाइस नवराते में देख रही वह व्यवहारों में आया है अंतर छोटी बहना के हाथों में बँधा कलावा है छुटकी
कोने में बैठी है मुनियाइस नवराते में देख रही वह व्यवहारों में आया है अंतर छोटी बहना के हाथों में बँधा कलावा है छुटकी
तोतले थे बोल जो आकार अपना गढ़ रहे हैंसीख ए, बी, सी, ककहरा वाक्य गढ़ना चाहते अब माँ, बुआ, पापा सहित कुछ नया कहना चाहते अबडगमगाते थे क़दम जो दौड़ आगे बढ़ रहे हैं
नभ की नीली आँखों को कजराने आए बादल आए, तपता मन हर्षाने आएकेवल बादल नहीं आस बनकर छाये हैं रचनाकार बड़े हैं, कुछ रचने आए हैं
उलझो अगर लताओं-सा वृक्षों पर उलझो उलझो मत उड़ती पतंग के माझे जैसाविषधर लिपटाकर भी तन का चंदन रहना ही जीवन है
सब बदलेगा नहीं अचानक कुछ कोशिश तो होजान रही हूँ एक दिवस में नहीं हरा होगा यह बंजर लेकिन इक-इक कर ये बिरवे कुछ तो पाटेंगे कल अंतरबूँद-बूँद से घट भरने तक कुछ कोशिश तो हो
नहीं बात पर टिकने वाले सभी वक्त के बंदे गंगाजल से कौन नहाये कौन रह गए गंदेफरक नहीं पड़ता चाहे सिर धुन लो रामलला