दुनिया
नहीं बात पर टिकने वाले सभी वक्त के बंदे गंगाजल से कौन नहाये कौन रह गए गंदेफरक नहीं पड़ता चाहे सिर धुन लो रामलला
नहीं बात पर टिकने वाले सभी वक्त के बंदे गंगाजल से कौन नहाये कौन रह गए गंदेफरक नहीं पड़ता चाहे सिर धुन लो रामलला
निरपराध से लड़वाते हैं निरपराध मरते सत्ता तो बस हुकुम चलाती कहाँ सब्र बरते कहने को हो हुक्मरान ने शत्रु पछाड़े हैं
कदम-कदम कर धरती नापे पर्वत मापे, खाई मापे पता नहीं कब शाम हो गई और हुई कब सुबह
जीवन भर दिन एक सरीखे कहो कहाँ होते फसल काटते वैसी जैसी खेतों में बोते फसल नहीं उत्तम उपजी तुम रोग रहे लाला
मोबाइल के भी इस युग में कागा का इंगित पोर-पोर में खुशियों को कर देता है अंकित दर्द भरे दिल को कोई सहलाने वाला है
निर्धनता का मंजर देखा सब दिन झेली लाचारी बेचा कभी नहीं अपने को बने पिता कब व्यापारी किंतु सुयश के सघन वृक्ष पर ऊँचे चढ़ते रहे पिता