चार चाँद Post author:sanjay.panday Post published:December 1, 1951 Post category:काव्य धारा Post comments:0 Comments चाँद, तुम सब के, किसी का मैं नहीं हूँ! भाग्य ऐसा, तुम कहीं हो, मैं कहीं हूँ!! और जानेचार चाँद
जाने किसकी सुधियों की यह धुँआधार बरसात है! Post author:sanjay.panday Post published:October 1, 1951 Post category:काव्य धारा Post comments:0 Comments मेरे नयनों में लहराती आधी-आधी रात गए तक– जाने किसकी सुधियों की यह धुँआधार बरसात है! और जानेजाने किसकी सुधियों की यह धुँआधार बरसात है!
मेघ-गीत Post author:sanjay.panday Post published:October 1, 1951 Post category:काव्य धारा Post comments:0 Comments ये आए दूसरे, नए! गए साल के मेघ गए!! और जानेमेघ-गीत
पावस गीत Post author:sanjay.panday Post published:October 1, 1951 Post category:काव्य धारा Post comments:0 Comments आज घिरे पावस-घन काले! आज हँसी धरती खिल, खिल-खिल, आज गगन ने दीपक बाले! और जानेपावस गीत
नील नभ में मेघ छाए Post author:sanjay.panday Post published:October 1, 1951 Post category:काव्य धारा Post comments:0 Comments नील नभ में मेघ छाए या प्रणय के दूत आए। और जानेनील नभ में मेघ छाए
घिरे आज नव घन Post author:sanjay.panday Post published:October 1, 1951 Post category:काव्य धारा Post comments:0 Comments घिरे आज नव घन प्रकृति के खुले ये घने केश-बंधन! और जानेघिरे आज नव घन