तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!
तेरे मन की पीर ओसकण समझेंगे, न कि तारे!
चरखे गा दे जी के गान!
चरखे गा दे, जी के गान!*एक डोरा सा उठवा जी परदोनों कहते बल दे, बल दे,
प्रिय शेष बहुत है रात अभी मत जाओ!
इस गीत को मैं अपनी 1949 की कृतियों में सबसे प्यारी मानता हूँ। यह ‘मिलन यामिनी’ में संग्रहीत है यह सर्वप्रथम ‘आजकल’ दिल्ली के मई 1949 के अंक में प्रकाशित हुई थी।
प्यार न बाँधा जाए!
प्रसंग यह है कि सुभद्रा कुमारी स्मारक अनावरण के समय श्रीमती महादेवी वर्मा ने कहा–‘नदियों के विजय स्तंभ नहीं बनते…!’ यह विचार मन में घुलता रहा घुलता रहा और जब वह गीत बनकर निकला तो यों आया और 1949 की मेरी सबसे प्यारी रचना बन गया!
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